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रामचरित मानस


लंकाकाण्ड

मेघनाद का युद्ध, रामजी का लीला से
नागपाश में बँंधना
दोहा:
* मेघनाद मायामय रथ चढ़ि गयउ अकास।
गर्जेउ अट्रहास करि भइ कपि कटकहि त्रास॥72॥
भावार्थ:-मेघनाद उसी (पूर्वोक्त) मायामय रथ पर चढ़कर
आकाश में चला गया और अट्रहास करके गरजा, जिससे
वानरों की सेना में भय छा गया॥72॥|
चौपाई :
* सक्ति सूल तरवारि कृपाना। अस्त्र सस्त्र कुलिसायुध
नाना।॥।
डारड़ परसु परिघ पाषाना। लागेउ बृष्टि करै बहु बाना।॥1|
भावार्थ:- वह शक्ति, शूल, तलवार, कृपाण आदि अस्र ,
शास्त्र एवं वज्ज आदि बहुत से आयुध चलाने तथा फरसे,
परिघ, पत्थर आदि डालने और बहुत से बाणों की वृष्टि
करने लगा॥1॥
* दस दिसि रहे बान नभ छाई। मानहूँ मघा मेघ झरि लाई।॥
धरु धरु मारु सुनिअ धुनि काना। जो मारइ तेहि कोउ न
जाना॥21।

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